सुप्रीम कोर्ट की सात जजो की पीठ विचार करेगी कि सांसदों विधायकों का कृत्य अपराध से जुड़ा है तो, क्या उन्हें मुकदमे से छूट उचित है?

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नई दिल्ली : सांसद , विधायक आपराधिक मुकदमा में छूट के मामले पर सात जजों की सुप्रीम कोर्ट की पीठ करेगी विचार। सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने बुधवार को 1998 के वोट के बदले नोट मामले में नरसिंम्हा राव फैसले पर पुनर्विचार सुनवाई शुरू की। कोर्ट में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, सुनवाई को तथ्य पर केंद्रित कर सकते हैं कि अगर घूस दी गई और कानून बनाने वाले ने ही उसे स्वीकार किया तो रिश्वतखोरी का अपराध क्या होगा । यह वास्तव में भ्रष्टाचार है। संविधान के अनुच्छेद 105 का मामला नहीं जिसके तहत कानून बनाने वालों को प्रतिरक्षा हासिल है । इस पर पीठ ने कहा हमें अंततः छूट के मामले को देखना है, पीठ में सीजेआई चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस एएस बोपन्ना जस्टिस एम एम सुंदरेष, जस्टिस पीएस नरसिंम्हा, जेबी पादरी वाला, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस मनोज मिश्रा है। याचिका कर्ता सीता सोरेन पर राज्यसभा में वोट के लिए नोट का आरोप लगाया था। सीता सोरेन के खिलाफ सीबीआई जांच कराने की गुहार लगाते हुए 2012 में निर्वाचन आयोग मे शिकायत की गई थी। इसके खिलाफ याचिका को झारखंड हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो पांच जजों की पीठ ने नरसिम्हा राव फैसले पर फिर से विचार करने का फैसला लिया। हमारे देश का कानून सभी लोगों के लिए एक समान होना चाहिए, चाहे वो आम जनता हो या उच्च पद के पदाधिकारी या सांसद विधायक।

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