नई दिल्ली : “एक राष्ट्र, एक चुनाव” के प्रस्ताव को मोदी कैबिनेट से मंजूरी मिलने के बाद, यह एक महत्वपूर्ण राजनीतिक और संवैधानिक विषय बन गया है। इस प्रस्ताव के तहत, देश में लोकसभा, राज्य विधानसभाओं, और स्थानीय निकायों के चुनाव एक साथ कराने की सिफारिश की गई है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय समिति ने इस मुद्दे पर गहन विचार-विमर्श के बाद मार्च में अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। इस प्रस्ताव का उद्देश्य चुनावी प्रक्रिया को सरल बनाना, संसाधनों की बचत करना, और राष्ट्रीय विकास में तेजी लाना है। समिति ने यह भी सुझाव दिया है कि भारत निर्वाचन आयोग और राज्य निर्वाचन आयोग मिलकर एक साझा मतदाता सूची और मतदाता पहचान पत्र बनाएँ, जिससे चुनावी प्रक्रिया में और पारदर्शिता आए। इसके लिए 18 संवैधानिक संशोधनों की सिफारिश की गई है, जिनमें से अधिकांश को राज्य विधानसभाओं द्वारा अनुमोदन की आवश्यकता नहीं होगी। इसके अलावा, कुछ संविधान संशोधनों के लिए संसद की मंजूरी जरूरी होगी। एक मतदाता सूची और एक मतदाता पहचान पत्र के लिए राज्यों की आधी से अधिक सहमति आवश्यक होगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमेशा से इस विचार का समर्थन किया है और इसे लोकतंत्र की मजबूती और राष्ट्रीय विकास के लिए आवश्यक बताया है। विधि आयोग भी इस विषय पर अपनी रिपोर्ट जल्द ही पेश कर सकता है, जिसमें 2029 से एक साथ चुनाव कराने और त्रिशंकु सदन की स्थिति में एकता सरकार बनाने के प्रावधानों पर विचार हो सकता है। यह प्रस्ताव देश की चुनावी प्रक्रिया में एक बड़े बदलाव का संकेत है, जिससे न केवल प्रशासनिक खर्च में कमी आएगी, बल्कि विकास कार्यों में भी तेजी आएगी। हालांकि, इस पर विभिन्न राजनीतिक दलों और राज्य सरकारों की प्रतिक्रियाएँ और सहमतियाँ देखना महत्वपूर्ण होगा।