बड़े बुजुर्गो की छत्रछाया कभी बोझ नहीं होती,वे हमारे सुरक्षा कवच है, हस्तरेखा विशेषज्ञ एवं आचार्य राजेश मिश्रा।

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रांची  :  बदलती परिस्थितियों में भी हमारे पूर्वजों द्वारा दिए गए संस्कार हमारी रक्षा कवच और छत्रछाया है।

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यदि हवाएं मौसम की गर्मी समाप्त कर सकती हैं, तो विश्वास कीजिए की, दुआएं भी मुसीबत के पल खत्म कर सकती हैं। ईश्वर की कथा,और इंसान की व्यथा बेअंत है,जो इसे समझ गया,वह ही सच्चा संत है,तीर्थों में सर्वश्रेष्ठ तीर्थ आपका हृदय है यह जितना निर्मल और निष्पाप होगा,सारे तीर्थ उतने ही आपके पास होंगे। गुरुर में इंसान को कभी इंसान नहीं दिखता, जैसे छत पर चढ़ जाओ तो अपना ही मकान नहीं दिखता।ख्वाबों के भरोसे न,छोड़िए हकीकत को,ये मसले कोशिशों से,हल हुआ करते हैं।अजीब चलन है दुनिया का,दीवारों में आये दरार तो,दीवारे गिर जाती है,पर, रिश्तों में आये दरार तो,दीवारे खड़ी हो जाती है।बड़े बुजुर्गो की छत्रछाया कभी बोझ नहीं होती,वे हमारे सुरक्षा कवच है। इन्हें सम्भाल कर रखिये। यही हमारी,संस्कृति परम्परा और संस्कार है । मुसाफ़िर कल भी था मुसाफ़िर आज भी हूँ, कल अपनों की तलाश में था , आज अपनी तलाश मैं हूँ । समय एक ऐसी गाड़ी है,जिसमें ब्रेक,भी नहीं और रिवर्स गियर भी नहीं.! पूर्वजों के दिए संस्कार ही हमारी रक्षा कवच और छत्रछाया है।

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