शिवपूजन सिंह : (रांची ):अभी -अभी खत्म हुए लोकसभा चुनाव का शोर थमा नहीं है, बल्कि कहीं न कहीं अभी भी इसके चिंनगारीयां और शोले भड़क रहें हैं। एक दर्द और मलाल तो अंदर ही अंदर भाजपा के अंदरखाने में है, जो बेशक उजागर नहीं हो रही, लेकिन इसकी तासीर तो मालूम पड़ ही जाती है। सबसे बड़ा अफसाना साबित तो भाजपा का अबकी बार 400 पार का का नारा रहा, जहां 300 पर भी आना कमल के लिए आफत बन गई।पार्टी इसबार अपना बहुमत भी हासिल नहीं कर सकी। इसके चलते किरकिरी,फजीहत और तोहमतों का सिलसिला अभी तक जारी है। यूपी, राजस्थान, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में भाजपा को जबरदस्त नुकसान हुआ. बिहार और झारखण्ड में भी सीटे घटी गई। झारखण्ड में भाजपा को इस बार 8 सीट ही आ सकी। पिछली बार आए 11सीट में 3 सीटों का नुकसान हुआ।सबसे ज्यादा चिंता में डालने वाली बात ये रही कि दिग्गज नेता अपनी साख तक नहीं बचा सके और पटखनी खा गए।खूंटी बीजेपी का गढ़ रहा है, इसबार कद्दावर आदिवासी नेता, केंद्रीय मंत्री और तीन बार के मुख्यमंत्री रहें अर्जुन मुंडा हार गए। बीजेपी के लिए ये बहुत बड़ा झटका साबित हुआ। वही इसके बाद बड़ी ताम झाम से जेएमएम छोड़कर आई सीता सोरेन दुमका के रण में पिछड़ गई.जबकि, कांग्रेस से अलग होकर बड़ी उम्मीदों से बीजेपी में आई गीता कोड़ा भी अपनी जीत चाईबासा सीट से दुहरा नहीं सकी।सीता, गीता और अर्जुन की हार ने बीजेपी को सिर्फ झटका ही नहीं दिया, बल्कि सोचने पर मजबूर और सचेत भी आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर कर किया है। बीजेपी इस बात को तो समझ गई है कि अंधेरे में तीर मारने, जोशीले तक़रीरे भरने की बजाय एक रणनीति और समीकरण साध कर ही झारखण्ड की सत्ता हासिल की जा सकती है। जहां एक छोटी सी भूल और भावना में उठाया गया कोई भी कदम भारी साबित हो सकता है।लोकसभा चुनाव में तो मोदी की लहर और देश के मुद्दे ज्यादा हावी थे, जबकि विधानसभा चुनाव में जाहिर है ये मुद्दे नहीं चलने वाले है।बल्कि, प्रत्याशी, स्थानीय और राज्य के मसले पर लोग ज्यादा वोट करेंगे। पिछली विधानसभा चुनाव की पराजय से सबक लेते हुए बीजेपी, इस बार कोशिश हर हाल में आजसू से के साथ गठबंधन करने की होगी।क्योंकि उसे मालूम है कि अगर पिछले विधानसभा में अगर दोनों साथ मिलकर लड़ते तो नतीजा उनके पक्ष में होता।लिहाजा इस पर उनका जोर इसबार कुछ ज्यादा होगा।
अभी झारखण्ड विधानसभा चुनाव के लिए प्रभारी शिवराज सिंह चौहान और सह प्रभारी हेमंत कुमार विस्वा को बनाया गया है। प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी पर भी बड़ा दारोमदार होगा, कि आखिर वो क्या करते है ? उनकी अगुवाई में लोकसभा का रिजल्ट तो अनुकूल नहीं आया, ऐसे में उनपर भी दबाव बेहतर करने का ज्यादा होगा।भाजपा की कोशिश संथाल और कोल्हान विधानसभा की सीटों पर भी कमल खिलाने की रहेगी, क्योंकि जेएमएम का ये गढ़ रहा है और हमेशा भाजपा के लिए ये चुनौती और खटकता रहता है। इस विधानसभा चुनाव में बीजेपी सीता, गीता और अर्जुन के लिए क्या किरदार तय करती है। ये भी देखना बेहद दिलचस्प होगा।क्योंकि ये साफ है कि लोकसभा की तुलना में विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए कहीं ज्यादा बड़ी चुनौती होगी, इसके साथ ही पिछले बार की तुलना में इसबार की हवा, चेहरे और मुद्दे भी बहुत कुछ बदले हुए है। भाजपा के लिए कांग्रेस से ज्यादा झारखण्ड मुक्ति मोर्चा की चुनौती कहीं ज्यादा होगी, क्योंकि झारखण्ड की सत्ता पर आसीन जेएमएम भी पूरी तैयारी कर रही है और लोकसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन के बाद उसके हौसले भी बुलंद है।