रांची : सियासत के दहलीज के पगडंडी पर बढ़ते रफ्तार में ,कब कहां ब्रेक लग जाए, कहा नहीं जा सकता, और झारखंड की राजनीति तो पानी की बुलबुल की तरह हो गई है। सियासत के राजनीति में बढ़ते कदम सियासत की दो धारी तलवार हैं, जिसकी जद में कोई भी किधर से भी आ सकता है . यहां मिले सियासी जख्म कभी नहीं सूखते, बल्कि रह -रह कर ये दर्द उभर आता हैं. राजनीति सिर्फ सत्ता की होती हैं, यहां कोई सगा पराया नहीं होता. इसकी करवटें और उठा -पटक ही असली चेहरे और रंग होती है, और बदलती रहती है. अच्छे सलाहकार मिल जाए तो दुर्गम रास्ते भी आसान हो जाते हैं, और सलाहकार सही ना हो तो आसान रास्ते भी दुर्गम बन जाते हैं। इन दिनों झारखंड की राजनीति उठा पटक और पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन की बागी होने और इसके पर्दे की पीछे की रणनीति पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन कि प्रेस सलाहकार चंचल की चंचलता को मानी जा रही है,और चर्चाओं के अनुसार सुर्खियों में है। बदलते झारखंड की राजनीति को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं राजनीतिक प्रशासनिक गलियारों सहित चौक चौराहों पर चल रही है। क्या मुख्यमंत्री के प्रेस सलाहकार धर्मेंद्र गोस्वामी उर्फ चंचल की चंचलता पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन को ले डूबी, और नई पार्टी बनाने पर मजबूर कर दिया। आज जितनी मुंह उतनी बातें हर जगह यही हो रही है कि चंचल की चंचलता ने पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन के राजनीतिक कैरियर को दाव पर लगा कर डुबो दिया है।
लेकिन झारखण्ड की जनता को तो ये सब देखने -सुनने की आदत सी हो गई. मानो इसकी मिट्टी में ही राजनीतिक सियासी हलचले लिपटी है. जहां थोड़ी सी हलचल, हिचकिचाहट ,भी बड़ा बखेड़ा खडा कर देती है। झारखंड के टाइगर कहे जाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन अब बगावती तेवर के बाद कार्य कर्ताओं से रायमुसवरा करने के बाद ऐलान कर दिया है कि नई पार्टी बनाकर अब जनता की सेवा करेंगे।
जरा सोचिये झारखण्ड मुक्ति मोर्चा का, वो नेता और वो चेहरा जो इस साल 3 जुलाई से पहले शिबू सोरेन परिवार का भरोसेमंद और बेहद करीबी हुआ करता था, जिसने झारखण्ड अलग राज्य के आंदोलन में शिबू सोरेन के साथ कदम से कदम मिलाकर अदोलन की आग की मशाल जलाये रखी. आज वही चंपाई सोरेन हरे झंडे को छोड़कर अपनी पार्टी बनाने की घोषणा कर दी है। इसके पीछे खुलेआम चौक चौराहे पर चंचल की चंचलता की चर्चाएं की जा रही है। जो भविष्य के पटकथा में कितनी सफल कितने असफल होंगे यह तो आने वाला वक्त ही बताएंगा।
जमीन घोटाले के आरोप में जेल से छूटने के पांच दिन के भीतर ही चंपाई सोरेन से मुख्यमंत्री की कुर्सी छीन ली गई?. बेचारे चंपाई को बेआबरू होकर सिहासन छोड़ना पड़ा. उनके आँखों में आंसू और दिल में दर्द से वह तड़प उठे. उन्हें वफादारी के बदले मिले इस जख्म से आहत हो गए. ऐसे होने के पीछे सूत्रों के अनुसार बताया जा रहा है कि पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन के प्रेस सलाहकार चंचल की चंचलता ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के लॉबी को एक एक कर के तोड़ना शुरू कर दिया था । अपनी लॉबी बनानी शुरू कर दी थी। जो मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के शुभचिंतक पदाधिकारी और राजनीतिक के थे ।वह अब मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से दूरियां बनानी शुरू कर दिए थे। जिसकी भनक मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को लग चुकी थी। जिसकी वजह से ही मुख्यमंत्री ने शपथ ग्रहण तिथि से पहले ही शपथ ग्रहण कर लिया। शपथ ग्रहण करने के बाद अपने राजनीतिक प्रशासनिक शुभचिंतकों और वक्त पर साथ खड़े रहने वालों से सीधे जुड़ने लगे और सारी गतिविधियों की जानकारी लेने लगे। जेल मे रहने के दौरान ही मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को सारे कार्यों की गतिविधियों की जानकारी उन्हें मिल चुकी थी। जेल से निकलते ही सता की बागडोर अपने हाथों में ले ली।
जिसे यह देख पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन के प्रेस सलाहकार, चंचल की चंचलता ने एक अलग रणनीति बनाई, जिसका रिजल्ट आज सभी के सामने है।इसी का नतीजा बताया जा रहा है कि आज तीर कमान छोड़कर अपनी अलग पार्टी बनाने की चंपाई सोरेन ने घोषणा कर दी है।
चंपाई ने इतने बड़े फैसले के पीछे आत्मसम्मान को लगी चोट को बताया. जिसके चलते आज इस मोड़ पर आना पड़ा और इशारों -इशारों में इसका जिम्मेदार हेमंत सोरेन को ठहराया है। वही जब कि चर्चाओं के अनुसार इसे लोग चंचल की चंचलता के परिणाम बता रहे हैं।