जमशेदपुर : 1947 में देश बटवारा के समय पाकिस्तान से आए सिख शरणार्थियों में 75 वर्ष बाद भी सरकार के द्वारा किए गए वादा खिलाफी के खिलाफ आक्रोश है एक और जहां 20 जून को पूरे विश्व में संयुक्त राष्ट्र के द्वारा शरणार्थी सम्मान दिवस मनाया जाता है तो वही भारत के अल्पसंख्यक सिख सेवा सदन ने देश में सम्मान और हक नहीं मिलने का आरोप लगाया है इनका कहना है कि जब 15 अगस्त 1947 को देश बंटवारा के दौरान पाकिस्तान से भारत में प्रवेश किए शरणार्थी अपने पूरे संपत्ति को पाकिस्तान में छोड़ आए थे उस दौरान सरकार ने कहा था शरणार्थियों को पूरे सम्मान के साथ भारत में बसाया जाएगा लेकिन ऐसा कुछ नही हुआ बल्कि सरकार ने सिख शरणार्थियों को धालभूमगढ़ के जंगल में ले जाकर छोड़ दिया था जहां से सभी धीरे-धीरे विभिन्न जिलों में जाकर रहने लगे सरकार का वादा था शरणार्थी परिवार को खेती-बाड़ी रोजगार के लिए 5 एकड़ जमीन और 12 डिसमिल जमीन मकान बनाने के लिए दी जाएगी लेकिन 75 वर्ष बीत जाने के बाद भी शरणार्थियों को कुछ नहीं मिला बल्कि जमशेदपुर सहित विभिन्न जिलों में उन्हें लीज पर रहना पड़ रहा है ऐसे में सिख सेवा सदन ने अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि अगर सरकार के पास में व्यवस्था ही नहीं थी तो फिर देश को आजाद करने की जरूरत क्या थी ऐसा लगता है देश की आजादी और बटवारा अपने स्वार्थ के लिए किया गया है।
यही वजह है कि सिख शरणार्थी, जीवन मरण के कगार पर है लेकिन सरकार का ध्यान उनकी ओर नहीं है सदन ने सरकार से यह भी सवाल किया कि क्या जम्मू कश्मीर ही भारत का अंग है वहां रहने वाले ही शरणार्थी है जिन्हे कई मूलभूत सुविधाओं के साथ जमीन आवंटन किया है तो फिर अन्य राज्य के जिलों में रहने वाले शरणार्थियों को सुविधा देने की नोटिफिकेशन क्यों निकाली गई इसे लेकर अल्पसंख्यक सिख सेवा सदन ने हाई कोर्ट में झारखंड सरकार के खिलाफ रिट दायर की है जबकि आने वाले समय में केंद्र सरकार के वादा खिलाफी के खिलाफ भी न्यायालय के शरण में जाएंगे।