Ranchi :- (शिवपूजन सिंह ): लोकतंत्र का फलना -फूलना किसी देश के लिए सबसे खूबसूरत अहसास होता है, क्योंकि ये जनता के द्वारा जनता का शासन होता है. हमारा देश हिंदुस्तान की ख़ुशनसीबी है की लोकतंत्र की सबसे बड़ी नजीर दुनिया में क़ायम की है. चुनाव होना और जनता द्वारा अपनी सरकार चुनने की प्रक्रिया सविधान के तहत चलते रहती है . अभी लोकसभा चुनाव हुए और अब इस साल के आखिर चार विधानसभा चुनाव जम्मू -कश्मीर, हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखण्ड विधानसभा के होंगे। जनता को लुभाने और अपनी तरफ खींचने के लिए पार्टियां सियासत के साथ -साथ सौगातों की पोटली खोलते रहती है, ताकि वोटबैंक उनकी तरफ झुके और सत्तासीन होने का मौका मिले।झारखण्ड. में भी चुनाव को लेकर सरगर्मियां और सारगोशियां अपने शबाब पर है. भाजपा और जेएमएम के बीच ही मुख्य मुकाबले का मैदान सजना है और दोनों एक दूसरे को धाराशाई करने के लिए कमर कसे हुए है.झारखण्ड में पिछले पांच साल से इंडिया गठबंधन की सरकार चल रहीं है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के हाथों ही हुकूमत की चाबी है. अब चुनाव होने वाला ऐसे मौक़े पर सत्तासीन सरकार भी चुनावी मोड पर है. हेमंत सरकार सौगातों और उपहारों की बारिश कर रहीं है. सबसे चर्चित मईया योजना में भी बदलाव केबिनेट की बैठक में किया गया, जिसमे अब 18 साल की आयु की महिला भी 1000 रुपए हर महीने मिलने वाली सम्मान राशि हासिल कर सकेगी. पहले 21 साल की उम्र निर्धारित की गई थी. लेकिन, इसे बदल दिया गया, ताकि और महिलाए भी इस दायरे में आए और फायदा उठाए.इसके साथ ही कैबिनेट की बैठक में नये अधिवक्ताओं को जो अपने करियर की शुरवात कर रहें है, उन्हें भी पांच साल ताक पांच हजार रुपए स्टाइपेंड मिलेंगे, ताकि अपने प्रोफेशन से नहीं हटे. साथ ही पांच लाख मेडिकल बीमा भी मिलेगा और तो और 65 साल से अधिक वरिष्ठ अधिवक्ताओं के पेशन को 7000 से बढाकर 14000 रुपए कर दिया गया.सरकार के इस कदम से राज्य के तक़रीबन 30,000 हजार वकीलों को फायदा पहुंचने का अनुमान जताया जा रहा है.इन सौगातों के अलावा इस चुनावी वर्ष में हेमंत सरकार ने सहायक पुलिसकर्मियों का मानदेय 13 हजार रुपए कर दिया.इससे लोगों में खुशी की लहर है. हेमंत सोरेन की सरकार तक़रीबन हर तबके को ख़ुश करने की कोशिश में है, ताकि भाजपा एकबार फिर सत्ता से चूक जाए.
हेमंत सोरेन के इस ताबड़तोड़ फैसले से कहीं न कहीं बीजेपी सकते में तो जरूर हो गई होगी और इसका काट ढूढ़ रही होगी. कुछ दिन पहले चर्चित मईया योजना को रोक लगाने की कोशिश कोर्ट के जरिए हुई. लेकिन चुनाव की अधिसूचना जारी होने से पहले इसे रोका नहीं जा सकता.. लाजमी है की कहीं एक डर तो पैदा होगा ही चुनाव से पहले एक माहौल तो बनेगा ही. भाजपा लाजमी है कि इन सौगातो से वोट बैंक बिदकने का एक डर सता रहा होगा.अगर योजनाओं की बात करें तो हेमंत सोरेन की कमान रहते इसकी फेहरिश्त अच्छी -खासी है.जिसमे अबुवा आवास योजना, अबुआ स्वास्थ्य योजना, सावित्रीबाई फूले किशोरी समृद्ध योजना,गुरूजी स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड योजना,झारखण्ड एकलव्य प्रशिक्षण योजना, मुख्यमंत्री सारथी योजना,मुख्यमंत्री सूखा राहत योजना,मुख्यमंत्री शिक्षा प्रोत्साहन स्कीम शामिल है.झारखण्ड की पिछले पांच साल की सरकार को देखें तो हेमंत सरकार ने तमाम झंझावतों से गुजरी. खुद कथित जमीन घोटालों के आरोप में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को जेल जाना पड़ा, काफ़ी सियासी उठा- पटक, बिखराव, तल्ख़ीयां, तोहमते और तनाव पसरा दिखलाई पड़ा. सरकार को कानून इंतजामत, बांग्लादेशी घुसपैठ, भ्रष्टाचार, अपराध, खनन -शराब घोटालों के आरोप विपक्ष लगातार लगाते रहा हैं. अभी भी इसपर लगातार भाजपा जोर -शोर से मुखर है और सरकार के कार्यकाल को नाकाम ठहरा रही है.
सवाल है कि क्या हेमंत सरकार की ये योजनाएं जनता को आगामी चुनाव में लुभा पायेगी?, क्या इंडिया गठबंधन वोट बटोर सकेगा? और क्या हेमंत सोरेन की सौगतों की पोटली फिर उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठायेगी?.ये तमाम सवाल चुनाव की इस दहलीज पर खटकते है. कहीं न कहीं ये तो सच्चाई है कि आगामी चुनाव के लिए ही इतनी तेज़ी से ये सब किया जा रहा है.ताकि सत्ता न फ़िसले. याद होगा दिल्ली की केजरीवाल सरकार भी इसी तरह से करती आई है और सत्ता भी हासिल की और इन सौगातों के जरिए सियासत का ट्रेंड भी बदला. दूसरे लफ्जों में कहें तो ये मतदाताओं को लुभाने की कवायद ही है. जिसे अब तक़रीबन सब पार्टियां इस नुस्खे को आजमा रही है.अगर आसनी से समझा जाए तो आम आवाम बढ़ती महंगाई और बढते बाजारवाद के चलते बढ़ती जरूरतों से परेशान है. आज एक आम इंसान के लिए घर चलाना और जिंदगी की गाड़ी खींचना इतना आसान नहीं है. ऐसे में ये योजनाएं तो लाजमी है की कुछ मददगार होगी ही, भले ये ऊंट के मुंह में जीरा ही क्यों न हो.लेकिन, योजना के साथ ही साथ सरकार को रोजी -रोजगार, पलायन और अन्य मूलभूत चीज़ों पर भी ध्यान देकर दुरुस्त करने की जरुरत है.ताकि, आम आवाम सबल और आत्मनिर्भर बन सके. इसके लिए प्रदेश के विकास की एक मजबूत रुपरेखा खींच कर ही हम तरक्की की राह पकड़ सकते हैं.जिससे ही लोगों की तकदीर बदल सकती है.
सवाल ये हैं कि आज झारखण्ड के वज़ूद में आए 25 साल यानि तक़रीबन ढाई दशक होने को हैं. क्या हमारा प्रदेश इस दरमियान जिस मकसद के लिए बना था, क्या वो चिज़े हासिल हुई? क्या आदिवासी मूलवासियों की तकदीर बदली? क्या झारखण्ड का आवाम आज वाकई में खुशहाल जिंदगी बसर कर रहा हैं?दरअसल, हमे इन सवालों को भी टटोलना चाहिए. और आत्ममंथन करना चाहिए कि आज हमारा झारखण्ड कहां खड़ा हैं.चुनाव के मौसम में हेमंत सरकार उपहार तो बांट रहीं हैं.लेकिन, प्रश्न यहीं हैं कि इन लोकलुभावन योजनाओं को जनता कैसे लेती हैं? क्या वाकई हेमंत सोरेन की सरकार सबकी पसंदीदा थी? और क्या पिछले पांच साल की सरकार ने शानदार काम किया?इन सारे सवालों का जवाब जनता ही आगामी विधानसभा चुनाव में वोट के जरिए देगी. साथ ही सौगातों के सहारे हेमंत सोरेन फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी में काबिज हो पाते हैं या नहीं इसका भी जवाब मिल जायेगा.
रिपोर्ट -शिवपूजन सिंह