सरायकेला : सरायकेला विधानसभा क्षेत्र इन दिनों झारखंड के सबसे हॉट सीट बना हुआ है। सरायकेला विधानसभा क्षेत्र में राजनीतिक स्थिति ने एक दिलचस्प मोड़ ले लिया है ।चुनावी माहौल में चंपई सोरेन और गणेश महाली के बीच की उठा पटक ने जनता को कंफ्यूज कर दिया है। चंपई सोरेन जो कल तक बीजेपी के खिलाफ बयान बाजी कर रहे थे, आज उसी पार्टी के लिए वोट मांग रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ गणेश महाली जो पहले बीजेपी का समर्थन कर रहे थे। अब झामुमो के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं और प्रचार कर रहे हैं। इस अचानक हुए राजनीतिक बदलाव ने न केवल पार्टी के भीतर बल्कि आम जनता के बीच भी भ्रम और दुविधा की स्थिति पैदा कर दी है। चंपई को भाजपा ने टिकट दिया है, जबकि गणेश महाली को झामुमो ने अपना उम्मीदवार बनाया है। ऐसे में दोनों एक दूसरे के खिलाफ कड़ी बयान बाजी कर रहे हैं। इस पूरे घटना कम से क्षेत्र की राजनीति में एक नया मोड़ आ गया है। जनता के लिए यह एक दुविधा बन गई है और जनता अब नोटा सिंबल को लेकर भी खुलेआम चर्चाएं कर रही है। विभिन्न दलों के उम्मीदवारों की रैलियों और चुनावी प्रचार के बीच, मतदाताओं की दुविधा भी बढ़ रही है। जनता के दुविधा के बीच NOTA (None of the Above) का सिंबल चर्चा का केंद्र बन गया है। सरायकेला विधानसभा क्षेत्र में राजनीतिक दलों के बीच प्रतिस्पर्धा काफी तीव्र है। सत्ताधारी पार्टी के उम्मीदवारों के साथ-साथ विपक्षी दलों के नेता भी चुनावी मैदान में हैं। लेकिन, कई मतदाता ऐसे हैं जो वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों से संतुष्ट नहीं हैं।
समस्याओं को ध्यान में रखते हुए, कुछ मतदाता NOTA का विकल्प चुनने की बात कर रहे हैं। NOTA का विकल्प उन मतदाताओं के लिए है जो किसी भी प्रत्याशी को वोट देने में असमर्थ हैं। यह विकल्प इस बात का संकेत है कि मतदाता अपने प्रतिनिधियों से कितने निराश हैं। सरायकेला के मतदाता अब यह सोचने पर मजबूर हैं कि क्या वे ऐसे उम्मीदवार को वोट दें जो उनकी समस्याओं का समाधान नहीं कर सकते। जनता की इस दुविधा के कई कारण हैं। कई बार चुनावी वादे पूरे नहीं होते हैं, जिससे जनता का विश्वास उठ जाता है। दूसरी ओर, राजनीतिक दलों के भीतर आंतरिक कलह और उम्मीदवारों की चयन प्रक्रिया भी मतदाताओं को असंतुष्ट कर रही है। इसके अलावा, स्थानीय मुद्दों पर ध्यान न देने के कारण भी जनता में दुविधा और नोटा सिंबल पर चर्चा हो रही है। सरायकेला विधानसभा क्षेत्र में चुनावी प्रतिस्पर्धा के बीच जनता की इस दुविधा को गंभीरता से लेना होगा। NOTA का बढ़ता समर्थन दर्शाता है कि लोग अब विकल्पों को गंभीरता से देख रहे हैं और बदलाव की आकांक्षा कर रहे हैं। ऐसे में राजनीतिक दलों को अपनी रणनीतियों में बदलाव लाना होगा, ताकि वे मतदाताओं के विश्वास को पुनः अर्जित कर सकें।