रांची :- सियासत एक ऐसी चीज है जिसका मिजाज और तासीर भांपना बेहद ही क़ठिन है. दरअसल, राजनीति एक ऐसी तनी हुई रस्सी है, जिसपर चलना हमेशा खतरों का खेल रहा है, यहां न तो कोई सटीक भविष्यवाणी कर सकता है और न ही दावा काम आता है। झारखण्ड के विधानसभा चुनाव में भाजपा ‘बटोगे तो कटोगे’ रटते रह गई और संथाल में बांग्लादेशी घुसपैठियों को लेकर खूब हल्ला मचाया. इस मुद्दे और मसले को ऐसी हवा और बायार बनाने की कोशिश की, लगा सत्ता की दहलीज पर ही भाजपा खड़ी है. अब बस विजय की रस्म ही बची है. लेकिन, ऐसा हुआ कि ये जुमले और मुद्दे जमीन पर चारों खाने चित हो गए. भाजपा को चुनाव परिणाम देखकर तो यही लगा कि बेवजह इसपर ढिंढोरा पीटा गया और हल्ला मचाया गया. इससे तो भगवा पार्टी को कुछ भी नहीं मिला. मानो ‘न माया मिली और न ही राम ‘ वाली बात हो गई। जिस संथाल में चार सीटे थी, वो भी कम हो गई, यानि संथाल सुन्न बट्टा सन्नाटा ही हो गया. वहां कमल मुरझा गया और घुसपैठिये का हल्ला बेवजह और बेबुनियाद साबित हो गया।अगर देखा जाए तो इस शिकास्त की पटकथा के पीछे कई वजहें थी. यहां भाजपा की अदूरदर्शिता और सटीक रणनीति नहीं बनी.किचकिच और खटपट शुरू से अंत तक किसी न किसी चीज को लेकर देखी गई। जिस जयराम महतो को तरजीह नहीं दिया जा रहा था , उसने ही बीजेपी का वोट बैंक खींच लिए. कुर्मी -महतो वोट भाजपा को कम पड़े. कैंची ने कमल को मुरझाया तो केला की खेती ही बेजार कर दी। दूसरी चीज ये रही कि मईया योजना ने तो लुटिया ही डुबो दी, महिलाओं ने खूब वोट जेएमएम, कांग्रेस, राजद को किया. इसका असर भी भरपूर रहा बीजेपी की इस पराजय में. मईया के सामने गोगो फेल हो गई। तीसरी चीज ये रही की भाजपा के आदिवासी नेता जमीन पर उतरते हुए उतने दिखाई नहीं पड़े. हेमता विश्वा शर्मा ने तो मानो अकेले मैदान में आ गए और पूरे कैंपन को ही मानो हाईजेक कर लिया. बाबूलाल, चंपाई सोरेन, अर्जुन मुंडा सरीखे नेता तो फिल्ड में उतना उतरे ही नहीं.उनकी अनदेखी और किनारा किया गया. यही ग़फ़लत भाजपा को भारी पड़ी। इसका नतीजा ये रहा की आदिवासी वोट बैंक जेएमएम से खिसका ही नहीं।
चुनाव के इम्तिहान में भाजपा ने जो मैदान सजाया था. उसमे बुरी तरह पिट गई., लेकिन, एक चीज गौर करने वाली बात सुखद जरूर दिखी कि भाजपा का वोट प्रतिशत नहीं बदला, पहले की तरह 33% बना रहा. ये पार्टी के लिए अच्छी बात रही की आज भी प्रदेश के वोटर्स सबसे ज्यादा कमल के ही तरफ है, बेशक पार्टी सीट को जीत में बदल नहीं सकी. वही सबसे ज्यादा सीट लाने वाली जेएमएम का वोट प्रतिशत 23% रहा. जो झारखण्ड की दूसरी पसंदीदा पार्टी मतदाताओं की रही। चुनाव में हार -जीत तो होते रहती है.लेकिन ये इलेक्शन भाजपा के लिए एक बुरे सपने की तरह है, क्योंकि ऐसा प्रदर्शन कभी नहीं रहा. अब उसे एक नये सिरे से सोचना होगा कि आगे क्या किया जाना चाहिए और क्या नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि अभी भी उनके पास एक बड़ा वोट बैंक इस खूबसूरत जल, जंगल, पहाड़ और जमीन के प्रदेश में है. आगे वो वापसी भी जोरदार तरीके से कर सकती है.इतनी माद्दा और जोर इस पार्टी में है.
रिपोर्ट -शिवपूजन सिंह